Three Phase Induction Motors (त्रिफेजी प्रेरण मोटरें)
आज के औद्योगिक युग में बहुफेज प्रत्यावर्ती धारा प्रेरण मोटर को व्यापक रूप में प्रयोग में लाया जाता है। इसका कारण यह है कि
- यह लागत में सस्ती, रचना में अत्यन्त सरल व टिकाऊ होती है,
- इसकी देखभाल की सबसे कम आवश्यकता होती है,
- स्वचलित (self Starting) एवं स्थिर गति वाली होती है,
- पूर्ण लोड पर दक्षता एवं शक्ति गुणक अच्छा होता है ।
- इसे विश्राम अवस्था से ही प्रारम्भ किया जाता है तथा इसे तुल्यकाली गति पर नहीं चलाया जा सकता है
उपरोक्त लाभों के अतिरिक्त इसके कुछ दोष भी है-
- इसकी गति को दक्षता में कमी किये बिना परिवर्तित नहीं किया जा सकता। गति लोड बढ़ाने के साथ घटती है।
- दिष्ट धारा शन्ट मोटर के समान इसकी
- इसका प्रारम्भिक बलघूर्ण दिष्ट धारा शन्ट मोटर की अपेक्षा कुछ कम है।
Note- प्रेरण मोटरों के रोटर कुण्डलन का किसी सप्लाई स्रोत से सीधा कोई सम्बन्ध नहीं रहता है।
त्रिफेजी प्रेरण मोटरों का कार्य सिद्धान्त। (Working Principle of Three Phase Induction Motors)
त्रिफेजी प्रेरण मोटर का कार्य सिद्धान्त भी त्रिफेजी ट्रांसफार्मर की भाँति विद्युत चुम्बकीय प्रेरण नियमों पर आधारित है, अन्तर केवल इतना है कि ट्रांसफार्मर की द्वितीयक कुण्डलन स्थिर रहती है, जबकि प्रेरण मोटरों की द्वितीयक कुण्डलन (रोटर) घूमती है जैसे ट्रांसफार्मर में शक्ति स्थानान्तरण प्राथमिक कुण्डलन से द्वितीयक कुण्डलन में प्रेरण द्वारा होता है, उसी प्रकार प्रेरण मोटर में भी शक्ति का स्थानान्तरण स्टेटर से रोटर में प्रेरण द्वारा होता है।
जब प्रेरण मोटर के स्टेटर या प्राथमिक कुण्डल को प्रत्यावर्ती धारा सप्लाई से जोड़ा जाता है तो स्टेटर में एक नियमित घूमने वाला या घूर्णी चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है जो तुल्य गति से घूमता है। इस क्षेत्र के घूमने की दिशा स्टेटर के कुण्डलन की धारा के फेज अनुक्रम के अनुसार होती है। त्रिफेजी प्रेरण मोटर में किन्हीं भी दो तारों (leads) को आपस में बदल लेने पर रोटर के घूमने की दिशा विपरीत की जा सकती है।
स्टेटर में उत्पन्न पुर्णी चुम्बकीय क्षेत्र के कारण रोटर में भी उसी गुण का एक वि० वा० बल उत्पन्न होता है जिसके कारण रोटर परिपथ में धारा प्रेरित होती है तथा अपना निजी चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करती है इस प्रकार स्टेटर में नियमित घूर्णी चुम्बकीय क्षेत्र (rotating magnetic field) तथा रोटर द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र में पारस्परिक क्रिया (inter action) के फलस्वरूप रोटर घूमने वाले क्षेत्र की दिशा में घूमने लगता है।
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त्रिफेजी प्रेरण मोटरों की संरचना (Construction of three phase Induction motors)
प्रेरण मोटर में मुख्यतः निम्न दो भाग होते हैं-
- स्टेटर (stator)
- रोटर(Rotor)
1. स्टेटर (Stator)
प्रेरण मोटर का स्टेटर, प्रत्यावर्तक तथा तुल्यकाली मोटर के स्टेटर के अनुरूप ही होता है। यह भाग सिलिकन इस्पात (silicon steel) को गोल पत्तियों (laminations) को संगठित करके बनाया जाता है। प्रत्येक पत्ती (lamination) की मोटाई 10-3 मिमी से 0-65 मिमी तक हो सकती है। भंवर धारा हानियों (eddy current losses) को कम करने के लिये प्रत्येक पत्ती पर वार्निश को पतली परतें चढ़ाकर विद्युतरोधित कर दिया जाता है। अब सभी पत्तियों को एक साथ पंच (punch) करके संगठित कर दिया जाता है तथा इन्हें मोटर फ्रेम या योक (yoke) से केबलों द्वारा कस दिया जाता है। स्टेटर कोड (stator core) में फेज कुण्डलन (phase windings) के लिये अन्दर की परिधि पर खांचे (slots) बने रहते है जिनमें कुण्डलन को लगाया जाता है। स्टेटर में यह खाँचे अर्द्ध खुले या पूर्ण खुले हुये हो सकते हैं। मोटर फ्रेम या योक के साथ दो सिरा प्लेटें (End plates) बोल्टों द्वारा कैसी होती है, तथा सिरा प्लेटों में बेयरिंग लगे होते हैं, जिसमें रोटर शाफ्ट घूमती है।
नीचे दिए गए चित्र में सिरा प्लेट दिखाई गई है।
योक का मुख्य कार्य स्टेटर क्रोड को थामना, स्टेटर कुण्डलन व सिरों की रक्षा करना तथा उत्पन्न बलपूर्ण को आधार प्रेम पर भेजना है। स्टेटर में रिफेजी कुण्डलन होती है जिसे जिफेडी सप्लाई प्रदान की जाती है।
नीचे दिए गए चित्र में प्रेरण मोटर का बिना कुण्डलन हुआ एक रेखीय आरेख दिखाया गया है, जिसके स्टेटर में अर्ध्द बन्द खांचे (semi slots) है।
नीचे दिए गए चित्र में प्रेरण मोटर के स्टेटर के कुछ भाग को कुण्डलित दिखाया गया है।
प्रेरण- मोटर का स्टेटर एक निश्चित ध्रुवों के लिये कुण्डलित किया जाता है। स्टेटर में ध्रुवों की संख्या सूत्र, P = 120 f/Ns से ज्ञात की जा सकती है।
यदि मोटर 2 ध्रुव वाली है तो उसकी गति 3000 p.m.] तथा यदि ध्रुव को है तो उसको गति 1500 r. p. m.] होगी। इस प्रकार की संख्या बढ़ाने से मोटर की गति कम की जा सकती है। स्टेटर में कुण्डलित त्रि-फेज कुण्डलन के 6 टर्मिनल सिरे मोटर के टर्मिनल बाक्स पर संयोजन के लिये निकल लिये जाते हैं। टर्मिनल बाक्स से मोटर की त्रि-फेजी कुण्डलन को स्टार या डेल्टा में संयोजित किया जा सकता है।
2. रोटर (Rotor)
यह प्रेरण मोटर का घूमने वाला भाग है। मुख्य रूप से अग्र प्रकार के रोटर प्रयोग में लाये जाते हैं।
- पिंजरा वेष्ठित रोटर (Squirrel-cage wound rotor)
- दुहरा पिंजरा वेष्ठित रोटर (Double squirrel-cage wound rotor)।
- फेज वेष्ठित रोटर (Phase wound rotor)।
(अ) पिंजरा वेष्ठित रोटर Squirrel-cage wound rotor)
दुहरा पिन्जरा वेष्टित रोटर (Double squirrel cage rotor )
इस प्रकार के रोटर के अन्दर की गोलाई में पूर्ण बन्द खांचे (closed slots) तथा बाहरी परिधि में अर्द्ध बन्द खाँचे होते हैं। अन्दर के पूर्ण बन्द खाँचों पर कम प्रतिरोध एवं अधिक अनुप्रस्थ काट वाली ताँबे की कड़ों द्वारा पिन्जरा कुण्डलन की जाती है। दूसरे शब्दों में इस खाँचों में तांबे की छड़े डालकर, दोनों तरफ से किसी चालक ते द्वारा लघुपचित कर दिया जाता है। बाहरी परिधि पर अर्द्ध बन्द खाँचों में उच्च प्रतिरोध को कम अनुप्रस्थ काट की पीतल छड़ों को डालकर, दोनों तरफ चालक छल्लों से लघुपचित कर दिया जाता है क्योंकि इस रोटर में दो पिन्कुण्डलन होती है इसलिये उसे दुसर पिवेष्टित रोटर तथा दुहरी पिंजरी मोटर कहते हैं। इन मोटरों का प्रारम्भिक पूर्ण (starting torque) प्रथम प्रकार के रोटर वाली मोटरों से अच्छा होता है। प्रारम्भ में उच्च कलन कार्य करती है, लेकिन जब मोटर अपनी गति में आ जाती है तो अग प्रतिरोध की कुण्डलन कार्य करने लगती है। चित्र 1-14 (अ) में इस प्रकार का रोटर दिखाया गया है।
(स) फेज वेष्टित रोटर (Phase wound rotor)
इस प्रकार के रोटर स्लिप रिंग प्रेरण मोटरों के लिये प्रयोग किये जाते हैं। रोटर क्रोड पर दिष्टधारा आर्मेचर को तरह खाँचे बने रहते हैं। चित्र 1-14 (ब) में इस प्रकार का रोटर बिना कुण्डलन के दिखाया गया है तथा चित्र 1-15 में इस प्रकार के रोटर के कुछ भाग को कुण्डलित दिखाया गया है इन रोटरों में प्रत्यावर्तकों को तरह 3-फेज, दो तह (double layer) की वितरित कुण्डलन (distributed winding) की जाती है। रोटर में उतने ध्रुव की ही कुण्डलन वेष्ठित की जाती है जितने ध्रुवों की कुण्डलन स्टेटर में वेष्ठित होती है। रोटर कुण्डलन को आन्तरिक रूप से स्टार में संयोजित किया जाता है। कुण्डलन के शेष सिरों को शाफ्ट पर तीन परस्पर विद्युतरोधित स्लिप रिंगों पर जोड़ दिया जाता है। इन तीनों स्लिप रिंगों पर लगे कार्बन बुशों द्वारा तीन तार बाहर निकाल लिये जाते हैं जिन्हें मोटर के स्टार्टर के तीन प्रतिरोधों से संयोजित कर दिया जाता है। रोटर प्रतिरोध स्टार्टर द्वारा मोटर प्रारम्भ करने के समय रोटर परिपथ में अतिरिक्त प्रतिरोध दिया जा सकता है ताकि प्रारम्भिक घूर्ण बढ़ जाये तथा गति/बलघूर्ण/धारा अभिलक्षणों को परिवर्तित किया जा सके।
जब मोटर अपनी सामान्य गति प्राप्त कर लेती है, उस समय तीनों स्लिप रिंग एक धातु कॉलर (metal coller) के द्वारा स्वतः लघुपचित (short circuited) हो जाते हैं। यह धातु कॉलर स्लिप रिंगों को शाफ्ट की ओर धक्का देता है, जिससे स्लिप रिंग लघुपथित हो जाते हैं। इसके पश्चात् स्लिप रिंगों पर लगे कार्बन ब्रुश स्वतः ऊपर उठ जाते हैं, ताकि घर्षण हानियाँ तथा टूट-फूट (wear and tear) कम हो। इस प्रकार हम देखते हैं, कि मोटर की सामान्य चलने की स्थिति में, वेष्ठित रोटर लघुथित हो जाता है तथा पिन्जरा प्ररूपी रोटर के समान दो कार्य करने लगता है।
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